
सुप्रीम कोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द की, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा पर दिया जोर
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा के महत्व को रेखांकित किया।
गुजरात पुलिस द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट में “ऐ खून के प्यासे, बात सुनो” गीत साझा करने को लेकर दर्ज एफआईआर के खिलाफ कांग्रेस नेता इमरान प्रतापगढ़ी ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी।
न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रतापगढ़ी के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है। साथ ही अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि इस तरह के मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले लिखे या बोले गए शब्दों के अर्थ को समझना चाहिए।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “विचारों और दृष्टिकोणों की स्वतंत्रता के बिना गरिमामय जीवन जीना असंभव है, जिसकी गारंटी संविधान के अनुच्छेद 21 में दी गई है।”
अदालत ने यह भी कहा कि एक स्वस्थ लोकतंत्र में, किसी व्यक्ति या समूह के विचारों का जवाब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के माध्यम से ही दिया जाना चाहिए, न कि दमन के जरिए।
“यदि बड़ी संख्या में लोग किसी व्यक्ति द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को नापसंद करते हैं, तब भी उस व्यक्ति के विचारों को व्यक्त करने के अधिकार का सम्मान और सुरक्षा की जानी चाहिए।”
न्यायालय ने साहित्य, कविता, नाटक, फिल्में, व्यंग्य और कला को “मानव जीवन को अधिक सार्थक बनाने वाला तत्व” बताया।
न्यायमूर्ति अभय ओका के बयान
फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति अभय ओका ने कहा, “न्यायालयों का यह कर्तव्य है कि वे संविधान में गारंटीकृत मौलिक अधिकारों की रक्षा करें और उन्हें लागू करें। कभी-कभी हमें, न्यायाधीशों को, लिखे या बोले गए शब्द पसंद न आएं, लेकिन हमारा दायित्व है कि हम अनुच्छेद 19(1) के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों की रक्षा करें।”
उन्होंने आगे कहा, “लिखे या बोले गए शब्दों के प्रभाव को उन लोगों के मानकों पर नहीं परखा जा सकता, जो हमेशा असुरक्षा की भावना से ग्रस्त रहते हैं या जो आलोचना को अपनी सत्ता या पद के लिए खतरा मानते हैं।”
गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को दी गई चुनौती
कांग्रेस नेता इमरान प्रतापगढ़ी ने गुजरात हाईकोर्ट के 17 जनवरी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने उनकी एफआईआर रद्द करने की याचिका खारिज कर दी थी, यह कहते हुए कि जांच अभी शुरुआती चरण में है।
जनवरी 3 को दर्ज हुई थी एफआईआर
प्रतापगढ़ी पर 3 जनवरी को गुजरात के जामनगर में एक सामूहिक विवाह समारोह के दौरान कथित भड़काऊ गीत बजाने को लेकर मामला दर्ज किया गया था।
कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष प्रतापगढ़ी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) की धारा 196 (धर्म, जाति आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देना) और धारा 197 (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक बयान देना) के तहत आरोप लगाए गए थे।
एफआईआर में 46-सेकंड की एक वीडियो क्लिप का उल्लेख किया गया था, जिसे प्रतापगढ़ी ने X (पहले ट्विटर) पर साझा किया था। इस वीडियो में वह भीड़ का अभिवादन करते हुए दिखाई दे रहे थे, जबकि बैकग्राउंड में एक गीत बज रहा था, जिसे भड़काऊ, राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक और धार्मिक भावनाओं के लिए आपत्तिजनक बताया गया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जीत
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। अदालत ने साफ किया कि लोकतंत्र में किसी व्यक्ति के विचारों को दबाने के बजाय, उन्हें अन्य विचारों के माध्यम से चुनौती दी जानी चाहिए।