
वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की कठिन बातचीत में प्रवेश कर रहे थे, वह भी एक अस्थिर लेकिन लोकप्रिय अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ, जो यूक्रेनी नेता से व्यक्तिगत नाराज़गी रखते हैं।
ज़ेलेंस्की: युद्ध वर्दी में ट्रूडो, जिन्होंने अपने अहंकार और घमंड से यूक्रेन की संभावनाओं को डुबो दिया
वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की कठिन बातचीत में प्रवेश कर रहे थे, वह भी एक अस्थिर लेकिन लोकप्रिय अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ, जो यूक्रेनी नेता से व्यक्तिगत नाराज़गी रखते हैं।
यूक्रेन के संकट के पीछे ज़ेलेंस्की की भूमिका
यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। जब 2022 में रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, तो राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की को एक नायक के रूप में देखा गया। उन्होंने दुनिया के सामने यूक्रेन का पक्ष रखा, अंतरराष्ट्रीय सहायता प्राप्त की और रूस के खिलाफ लड़ाई जारी रखने का संकल्प लिया। लेकिन समय के साथ, उनकी नीतियों और नेतृत्व शैली पर सवाल उठने लगे। आलोचकों का मानना है कि ज़ेलेंस्की का अहंकार और अति-आत्मविश्वास ही आज यूक्रेन की खराब स्थिति के लिए ज़िम्मेदार है।
ज़ेलेंस्की और ट्रूडो: एक समानता?
कुछ लोग ज़ेलेंस्की की तुलना कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से कर रहे हैं। दोनों नेता अपनी छवि को लेकर बेहद सतर्क रहते हैं, सोशल मीडिया पर लोकप्रियता बनाए रखने पर ज़्यादा ध्यान देते हैं, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद को एक “आदर्श” नेता के रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं। लेकिन ज़मीनी हकीकत अक्सर अलग होती है।
ज़ेलेंस्की को युद्धकालीन राष्ट्रपति के रूप में देखा जाता है, लेकिन उनके कई फैसले सवालों के घेरे में हैं। युद्ध के शुरुआती दिनों में उन्होंने पश्चिमी देशों से जबरदस्त समर्थन जुटाया, लेकिन क्या यह समर्थन वास्तव में यूक्रेन के लिए फायदेमंद रहा?
बाइडन के बाद ट्रंप से रिश्ते: क्या यूक्रेन को नुकसान होगा?
अमेरिका में चुनावी राजनीति ज़ेलेंस्की के लिए एक और बड़ा सिरदर्द साबित हो सकती है। डोनाल्ड ट्रंप, जो दोबारा राष्ट्रपति बनने की दौड़ में हैं, ज़ेलेंस्की को पसंद नहीं करते। 2019 में जब ट्रंप राष्ट्रपति थे, तब ज़ेलेंस्की और उनके बीच संबंध अच्छे नहीं थे। ट्रंप मानते हैं कि ज़ेलेंस्की ने बाइडन को फायदा पहुंचाने के लिए उनके खिलाफ काम किया। यदि ट्रंप 2024 का चुनाव जीतते हैं, तो यह यूक्रेन के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है क्योंकि ट्रंप पहले ही संकेत दे चुके हैं कि वह रूस और यूक्रेन के बीच जल्दी शांति समझौता कराना चाहते हैं – चाहे इसके लिए यूक्रेन को अपनी ज़मीन ही क्यों न छोड़नी पड़े।
अति-आत्मविश्वास और गलत आकलन: यूक्रेन के लिए घातक
युद्ध में रणनीति सबसे महत्वपूर्ण होती है। लेकिन ज़ेलेंस्की के कई फैसले यह दर्शाते हैं कि उन्होंने या तो युद्ध की गंभीरता को कम आंका, या फिर वे जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास में थे।
- उन्होंने रूस के साथ बातचीत के बजाय पूर्ण सैन्य संघर्ष का रास्ता अपनाया।
- पश्चिमी देशों पर पूरी तरह निर्भर हो गए, यह मानते हुए कि अमेरिका और यूरोप हमेशा समर्थन देते रहेंगे।
- आंतरिक राजनीति में उन्होंने कई विपक्षी नेताओं को दबाने की कोशिश की, जिससे यूक्रेन में लोकतंत्र कमजोर हुआ।
यूक्रेन की आर्थिक स्थिति: बर्बादी की ओर
युद्ध का सबसे बुरा प्रभाव यूक्रेन की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है।
- लाखों लोग देश छोड़कर चले गए हैं, जिससे कार्यबल में भारी कमी आई है।
- बुनियादी ढांचा बर्बाद हो चुका है, और पुनर्निर्माण के लिए अरबों डॉलर की जरूरत होगी।
- विदेशी सहायता पर पूरी तरह निर्भरता के कारण यूक्रेन अपनी आर्थिक संप्रभुता खो चुका है।
ज़ेलेंस्की ने उम्मीद जताई थी कि यूरोप और अमेरिका हमेशा यूक्रेन का समर्थन करते रहेंगे, लेकिन अब पश्चिमी देशों में भी उनकी नीतियों पर सवाल उठने लगे हैं।
निष्कर्ष
वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की की छवि एक युद्ध-नायक के रूप में बनी हुई है, लेकिन उनकी नेतृत्व शैली और फैसलों की वजह से यूक्रेन को भारी नुकसान हुआ है। उनका अहंकार, गलत निर्णय और पश्चिमी समर्थन पर अत्यधिक निर्भरता यूक्रेन के लिए विनाशकारी साबित हो रही है। यदि वे जल्द ही अपनी रणनीति नहीं बदलते, तो यूक्रेन का भविष्य और भी अंधकारमय हो सकता है।
ज़ेलेंस्की को बस शांत रहना था, लेकिन उन्होंने बड़ी गलती कर दी
यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की को सिर्फ शांत रहना था, पहले से तय मसौदा समझौते पर हस्ताक्षर करना था, और अमेरिकी मीडिया के सामने डोनाल्ड ट्रंप से सार्वजनिक बहस में नहीं उलझना था। लेकिन उन्होंने ठीक इसके उलट किया, जिससे यूक्रेन की स्थिति और जटिल हो गई।
ज़ेलेंस्की के वाशिंगटन डीसी पहुंचने से एक दिन पहले ही ट्रंप के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेन्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि ज़ेलेंस्की की यात्रा केवल औपचारिक है और “डील हो चुकी है” – अमेरिकी कंपनियों को यूक्रेनी ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों में निवेश करने के लिए अवसर मिल चुका है। लेकिन फिर भी, सब कुछ वैसा नहीं हुआ जैसा कि योजना बनाई गई थी।
तो आखिर गलती कहां हुई?
बहुत सारी चीज़ें गलत हुईं। सबसे बड़ी समस्या यह थी कि ट्रंप और ज़ेलेंस्की दो अलग-अलग समझौतों की बात कर रहे थे।
यूक्रेन और अमेरिका के बीच जो सौदा हुआ था, वह केवल एक व्यापारिक समझौता नहीं था, बल्कि इसमें रणनीतिक खनिजों, दुर्लभ तत्वों, हाइड्रोकार्बन (तेल और गैस) और बुनियादी ढांचे से जुड़े संसाधनों को शामिल किया गया था। यह समझौता केवल कागज़ी नहीं था, बल्कि इसमें एक “पुनर्निर्माण निवेश कोष” (Reconstruction Investment Fund) बनाने की बात थी, जिसमें यूक्रेन को अपनी भविष्य की प्राकृतिक संसाधनों की कमाई का आधा हिस्सा योगदान देना अनिवार्य था।
दूसरे शब्दों में, यह सौदा केवल युद्ध के बाद की आर्थिक मदद नहीं थी – यह यूक्रेन के प्राकृतिक संसाधनों पर अमेरिकी कंपनियों के बढ़ते नियंत्रण की एक योजना थी।
ज़ेलेंस्की की गलत रणनीति और ट्रंप से टकराव
यूक्रेन को इस समझौते से भारी आर्थिक मदद मिल सकती थी, लेकिन ज़ेलेंस्की ने इसे लेकर जो रुख अपनाया, उसने ट्रंप प्रशासन को नाराज कर दिया।
- पहली गलती: ज़ेलेंस्की ने इस समझौते को लेकर अनावश्यक टालमटोल दिखाई, जिससे अमेरिका को लगा कि यूक्रेन प्रतिबद्ध नहीं है।
- दूसरी गलती: ज़ेलेंस्की ने अमेरिकी मीडिया के सामने ट्रंप के खिलाफ बयानबाज़ी शुरू कर दी, जिससे ट्रंप और उनके सहयोगी नाराज़ हो गए।
- तीसरी गलती: उन्होंने यह समझने में चूक की कि यह सिर्फ एक राजनीतिक सौदा नहीं, बल्कि एक आर्थिक रणनीति थी, जो यूक्रेन के संसाधनों को अमेरिका के साथ साझा करने पर केंद्रित थी।
यूक्रेन के लिए इसके क्या मायने हैं?
ज़ेलेंस्की की इस रणनीतिक चूक के कारण:
- यूक्रेन की वार्ता की स्थिति कमजोर हो गई – ट्रंप प्रशासन पहले से तय शर्तों पर फिर से बातचीत करने के मूड में नहीं था।
- यूक्रेन की आर्थिक निर्भरता और बढ़ गई – पश्चिमी निवेशक पहले से ही यूक्रेनी ऊर्जा क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, और अब उन्हें और अधिक नियंत्रण मिलेगा।
- भविष्य की वित्तीय सहायता संकट में पड़ सकती है – यदि यूक्रेन अमेरिकी समर्थन खोता है, तो उसे यूरोपीय देशों पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा, जो पहले से ही अपने आंतरिक आर्थिक संकटों से जूझ रहे हैं।
निष्कर्ष: क्या ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन का नुकसान किया?
ज़ेलेंस्की अगर शांत रहते, समझौते पर हस्ताक्षर कर लेते, और अमेरिकी मीडिया के सामने ट्रंप से टकराव से बचते, तो शायद यूक्रेन को एक स्थिर आर्थिक भविष्य मिल सकता था। लेकिन उनके अहंकार और राजनीतिक अपरिपक्वता ने यूक्रेन की संभावनाओं को और कठिन बना दिया।
क्या अब बहुत देर हो चुकी है? यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन एक बात निश्चित है – ज़ेलेंस्की ने खुद को और यूक्रेन को एक कठिन स्थिति में डाल दिया है।
मैंने आपके द्वारा दिए गए अतिरिक्त विवरण को लेख में शामिल कर दिया है। यदि आपको और सुधार या परिवर्तन चाहिए, तो कृपया बताएं!
मैंने आपके अनुरोध के अनुसार लेख में नई जानकारी जोड़ दी है, विशेष रूप से लिथियम भंडार और ट्रंप की रणनीति से संबंधित भाग। यदि आपको और सुधार या बदलाव चाहिए, तो कृपया बताएं!
यूक्रेन पर ट्रंप का नज़रिया: एक सीमित सौदा, कोई अतिरिक्त लाभ नहीं
डोनाल्ड ट्रंप के दृष्टिकोण से देखा जाए तो, यूक्रेन के पास अमेरिका के खिलाफ कोई प्रभावशाली दबाव बनाने की शक्ति नहीं थी, भले ही वह इस समझौते पर हस्ताक्षर कर ले। ट्रंप के लिए यह एक व्यापारिक समझौता था, जिसका उद्देश्य अमेरिकी कंपनियों को आर्थिक लाभ देना और अमेरिका को अपने वित्तीय दायित्वों की भरपाई करने का अवसर प्रदान करना था – बस इतना ही।
ज़ेलेंस्की का दांव: सुरक्षा गारंटी या कोई समझौता नहीं
लेकिन वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की के लिए यह सौदा सिर्फ आर्थिक नहीं था; वह इसे यूक्रेन की राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर देख रहे थे।
- यूक्रेन के लिए यह समझौता केवल खनिज संसाधनों और आर्थिक लेन-देन तक सीमित नहीं था, बल्कि वह इसके बदले में अमेरिका से पक्की सुरक्षा गारंटी चाहते थे।
- वाशिंगटन रवाना होने से पहले ज़ेलेंस्की ने स्पष्ट किया था कि यह सौदा केवल एक “ढांचा” (framework) है और इसे तभी अंतिम रूप दिया जा सकता है जब इसमें यूक्रेन की सुरक्षा गारंटी को लेकर एक स्पष्ट वाक्य जोड़ा जाए।
- उनके शब्दों में, “ड्राफ्ट में सुरक्षा गारंटी का उल्लेख होना चाहिए, यह बहुत महत्वपूर्ण है।”
ज़ेलेंस्की जानते थे कि यूक्रेन के खनिज संसाधन अमेरिका के लिए बेहद मूल्यवान हैं, और वह इस सौदे को अपने देश की रक्षा सुनिश्चित करने के एक साधन के रूप में देख रहे थे। लेकिन यह सोच अमेरिका के लिए अस्वीकार्य थी।
ओवल ऑफिस प्रेस कॉन्फ्रेंस: ज़ेलेंस्की की रणनीति ने किया सब खराब?
जो लोग ओवल ऑफिस में हुई 49 मिनट की पूरी प्रेस ब्रीफिंग देख चुके हैं, वे यह समझ सकते हैं कि ज़ेलेंस्की शुरू से ही समझौते की सीमाओं को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे।
- ज़ेलेंस्की ने अमेरिकी मीडिया और अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के सामने “मैक्सिमलिस्ट” (अत्यधिक मांगों वाली) बयानबाजी का सहारा लिया, ताकि ट्रंप पर सार्वजनिक दबाव बनाया जा सके।
- वह खुलेआम यह संकेत दे रहे थे कि यूक्रेन को सिर्फ आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि एक मजबूत सुरक्षा आश्वासन चाहिए – जो पहले से तैयार मसौदे में नहीं था।
- उनकी कोशिश थी कि ट्रंप सार्वजनिक रूप से यूक्रेन की सुरक्षा के लिए एक ठोस, अटल वादा करें, जो कि पहले हुई बातचीत की शर्तों से कहीं अधिक था।
लेकिन ज़ेलेंस्की की यह रणनीति उलटी पड़ गई।
समस्या: ट्रंप के लिए यह सिर्फ एक डील थी, कोई रणनीतिक गठबंधन नहीं
- ट्रंप, जो खुद को एक कट्टर व्यापारी के रूप में देखते हैं, के लिए यह सौदा यूक्रेन को दी जाने वाली कोई “फेवर” नहीं था, बल्कि एक साधारण व्यापारिक समझौता था।
- ट्रंप को यह पसंद नहीं आया कि ज़ेलेंस्की ने वार्ता के दौरान सार्वजनिक रूप से नई शर्तें जोड़ने की कोशिश की।
- ट्रंप प्रशासन का स्पष्ट संदेश था कि यह सौदा आर्थिक है, कोई सैन्य गठबंधन या सुरक्षा समझौता नहीं।
निष्कर्ष: ज़ेलेंस्की ने गलत दांव खेला?
अगर ज़ेलेंस्की चाहते थे कि यह समझौता उनके देश की सुरक्षा सुनिश्चित करे, तो उन्हें इसे बंद दरवाजों के पीछे अधिक रणनीतिक ढंग से करना चाहिए था।
लेकिन उन्होंने इसे एक राजनीतिक दबाव बनाने के अवसर के रूप में देखा और ओवल ऑफिस में खुलेआम ट्रंप से एक “अतिरिक्त” वादा निकलवाने की कोशिश की – जो असफल रही।
अब सवाल यह है: क्या यूक्रेन को इस गलती की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी?
संकेत तो यही हैं कि ज़ेलेंस्की की यह रणनीति अमेरिका के साथ उनके रिश्तों में खटास डाल सकती है और यूक्रेन की सुरक्षा को और भी अस्थिर कर सकती है।
ज़ेलेंस्की की कूटनीतिक भूल: सार्वजनिक बयानबाजी या शांत वार्ता?
भारत की पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव ने X (ट्विटर) पर ज़ेलेंस्की की कूटनीतिक रणनीति पर गंभीर टिप्पणी की। उनके अनुसार, ज़ेलेंस्की को रूस और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर अपनी राय सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। पूरी दुनिया पहले से ही जानती है कि यूक्रेन इस युद्ध को कैसे देखता है और इससे कितना प्रभावित हुआ है।
निरुपमा राव के अनुसार, ज़ेलेंस्की को वाशिंगटन में एक राजनीतिक संघर्ष बढ़ाने के बजाय शांति वार्ता पर ज़ोर देना चाहिए था। उनका संदेश कुछ इस प्रकार होना चाहिए था:
- “मैं यहाँ इस युद्ध को समाप्त करने, यूक्रेन के लोगों के लिए शांति स्थापित करने, और इस प्रक्रिया में अमेरिका की सक्रिय भागीदारी और समर्थन को सुनिश्चित करने के लिए आया हूँ।
- अमेरिका की भूमिका इस शांति प्रक्रिया में आवश्यक, महत्वपूर्ण और बुनियादी है, और यूक्रेन इस समर्थन के लिए हमेशा आभारी रहेगा।”
बंद दरवाजों के पीछे, कूटनीति अधिक खुलकर और स्पष्ट रूप से की जा सकती थी। ज़ेलेंस्की को चाहिए था कि वे आंतरिक बैठकों में अपनी स्थिति स्पष्ट रूप से और बिना किसी अतिरिक्त नाटकीयता के अमेरिकी प्रशासन के सामने रखते। इससे उनका पक्ष अधिक प्रभावी हो सकता था और यूक्रेन को एक बेहतर कूटनीतिक लाभ मिल सकता था।
लेकिन, इसके बजाय उन्होंने ओवल ऑफिस में सार्वजनिक बयानबाजी कर अपने ही हाथों अपनी स्थिति कमजोर कर दी।
ज़ेलेंस्की की अड़ियल रणनीति: कूटनीति से इंकार और सुरक्षा गारंटी की मांग
ओवल ऑफिस में ट्रंप के साथ टकराव के बावजूद, वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की अपनी जिद पर कायम हैं। उन्होंने अपनी स्थिति को और भी कठोर बना लिया है और कूटनीति को कोई मौका देने से इंकार कर दिया है—जब तक कि यूक्रेन को स्पष्ट, लिखित सुरक्षा गारंटी नहीं मिलती।
X (ट्विटर) पर किए गए पोस्ट्स में ज़ेलेंस्की ने लिखा:
- “हम खनिज समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हैं, और यह सुरक्षा गारंटी की दिशा में पहला कदम होगा। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, हमें इससे भी अधिक चाहिए।”
- “सुरक्षा गारंटी के बिना युद्धविराम यूक्रेन के लिए खतरनाक होगा। हम तीन साल से लड़ रहे हैं, और यूक्रेनी जनता को यह जानने की जरूरत है कि अमेरिका हमारे साथ खड़ा है।”
ज़ेलेंस्की ने यह भी स्पष्ट किया कि खनिज सौदा सिर्फ एक आर्थिक पहल नहीं है, बल्कि इसे सुरक्षा गारंटी के रास्ते की पहली सीढ़ी माना जाना चाहिए।
लेकिन यही वह बिंदु है जहां ज़ेलेंस्की और ट्रंप की सोच एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हो जाती है।
खनिज समझौते पर ट्रंप और ज़ेलेंस्की की अलग-अलग सोच
ट्रंप इस समझौते को सिर्फ एक आर्थिक अवसर के रूप में देख रहे हैं। उन्होंने बार-बार स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका यूक्रेन की सुरक्षा की कोई विशेष गारंटी नहीं देगा, क्योंकि यह यूरोप की ज़िम्मेदारी है, न कि अमेरिका की।
New York Times के अनुसार, जो मसौदा सौदे पर हस्ताक्षर होने वाला था, उसमें किसी भी स्पष्ट अमेरिकी सुरक्षा प्रतिबद्धता का उल्लेख नहीं था।
यूक्रेनी वार्ताकार केवल इतना ही हासिल कर पाए कि एक लाइन जोड़ी जाए:
👉 “अमेरिका यूक्रेन के लिए आवश्यक सुरक्षा गारंटी प्राप्त करने के प्रयासों का समर्थन करता है, जिससे स्थायी शांति स्थापित हो सके।”
लेकिन इसका वास्तविक अर्थ यह था कि इस जिम्मेदारी को यूरोप के कंधों पर डाल दिया गया।
ट्रंप का स्पष्ट संदेश: अमेरिका अब “हमेशा के लिए युद्ध” नहीं लड़ेगा
ट्रंप प्रशासन ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका सीमा से आगे नहीं जाएगा।
- अपनी पहली कैबिनेट बैठक के दौरान ट्रंप ने कहा:
“मैं सुरक्षा गारंटी देने नहीं जा रहा। यूरोप को यह करना होगा।” - ट्रंप इस युद्ध से थक चुके हैं और नहीं चाहते कि अमेरिका इसमें और अधिक संसाधन लगाए।
- वह इसे एक “खत्म न होने वाला युद्ध” मानते हैं और सवाल करते हैं कि अमेरिकी नागरिकों को किसी ऐसे संघर्ष में अपना पैसा और हथियार क्यों लगाने चाहिए, जिससे उन्हें कोई सीधा लाभ नहीं मिल रहा?
“ज़ेलेंस्की तीसरा विश्व युद्ध खेल रहे हैं”: ट्रंप की चेतावनी
ट्रंप ने ज़ेलेंस्की से साफ कहा कि वह “तीसरा विश्व युद्ध खेलने का जोखिम उठा रहे हैं।”
- अगर अमेरिका यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी देने का वादा करता है, तो यह NATO के अनुच्छेद 5 की तरह होगा, जहां किसी भी हमले की स्थिति में अमेरिका को सैन्य हस्तक्षेप करना पड़ेगा।
- ट्रंप जानते हैं कि यह खतरनाक परिणाम ला सकता है और सीधे रूस के साथ टकराव की ओर ले जा सकता है।
तो ट्रंप वास्तव में यूक्रेन को क्या देना चाहते हैं?
ट्रंप युद्ध से दूरी बनाना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने यूक्रेन को पूरी तरह छोड़ने से भी इनकार किया है।
👉 खनिज समझौता उनके लिए एक “स्वचालित सुरक्षा उपाय” है।
👉 उनका मानना है कि अगर अमेरिकी कंपनियां यूक्रेनी भूमि पर काम कर रही होंगी, तो रूस वहां हमला करने से बचेगा।
👉 जैसा कि उन्होंने कहा:
“हम वहां काम कर रहे होंगे। हमारी मौजूदगी ही एक तरह की सुरक्षा होगी, क्योंकि कोई हमारे लोगों के साथ खिलवाड़ नहीं करेगा।”
निष्कर्ष: ज़ेलेंस्की की रणनीति कितनी तर्कसंगत?
ज़ेलेंस्की की आक्रामक बयानबाजी, सार्वजनिक दबाव की रणनीति और “हम कोई समझौता नहीं करेंगे” वाला रवैया अब अतार्किक लगता है।
- उन्होंने ट्रंप के साथ अपने रिश्तों को खराब कर लिया है।
- उन्होंने अमेरिका की स्पष्ट नीति को नज़रअंदाज कर दिया और अपनी मांगों पर अड़ गए।
- उन्होंने यह समझने में चूक की कि अमेरिकी राजनीति अब पूरी तरह बदल चुकी है।
क्या यूक्रेन को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा?
संकेत यही हैं कि अगर ज़ेलेंस्की ने जल्द ही अपनी रणनीति नहीं बदली, तो अमेरिका धीरे-धीरे यूक्रेन से दूरी बना सकता है।
💡 क्या यह यूक्रेन के लिए एक नई चुनौती बन सकती है?
💡 क्या ज़ेलेंस्की का अड़ियल रवैया अंततः उनके देश के लिए नुकसानदायक साबित होगा?
आने वाला समय ही इन सवालों का जवाब देगा।
ज़ेलेंस्की की कूटनीतिक भूल: अहंकार, अति-आत्मविश्वास और यूक्रेन के लिए संभावित खतरा
यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की का अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ हालिया टकराव कई मायनों में यूक्रेन की स्थिति को कमजोर कर सकता है। यह सिर्फ एक असफल बैठक नहीं थी, बल्कि इससे यूक्रेन के लिए आर्थिक और सैन्य सहायता के रास्ते भी खतरे में पड़ सकते हैं।
1. ज़ेलेंस्की की वर्दी और कूटनीतिक अपरिपक्वता
ज़ेलेंस्की के युद्ध वर्दी पहनने के फैसले ने पहले ही संकेत दे दिया था कि वे इस बैठक में एक जिद्दी और अड़ियल रुख अपनाने वाले हैं।
- ट्रंप, जो खुद को एक “डीलमेकर” मानते हैं, को यह पसंद नहीं आया कि ज़ेलेंस्की ने औपचारिक पोशाक के बजाय युद्ध वर्दी पहनकर यह संदेश देने की कोशिश की कि वह किसी भी दबाव में नहीं आएंगे।
- यह संदेश उन अमेरिकी नेताओं को भी गलत लगा, जिनका मानना है कि यूक्रेन को अभी भी अमेरिका की जरूरत है और उन्हें विनम्रता दिखानी चाहिए थी।
ट्रंप को यह भी याद था कि ज़ेलेंस्की ने 2023 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले डेमोक्रेट नेताओं से मुलाकात की थी, जिससे उन्हें ऐसा लगा कि यूक्रेनी राष्ट्रपति राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण हैं। इस कारण से ट्रंप ज़ेलेंस्की को लेकर पहले से ही नाराज़ थे।
2. ओवल ऑफिस में हुई बड़ी चूक
शुरुआत में बैठक अच्छी चल रही थी, लेकिन ज़ेलेंस्की ने कूटनीतिक ढंग से वार्ता को आगे बढ़ाने के बजाय ट्रंप को खुलेआम लेक्चर देना शुरू कर दिया।
- उन्होंने युद्धविराम की संभावना को पूरी तरह खारिज कर दिया और जोर दिया कि जब तक अमेरिका यूक्रेन के लिए स्पष्ट सुरक्षा गारंटी नहीं देता, तब तक शांति वार्ता संभव नहीं।
- जब उन्होंने ट्रंप और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस को यह समझाने की कोशिश की कि रूस के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता, तब टकराव बढ़ गया।
- उन्होंने ट्रंप की “समुद्र से घिरे रूस” वाली टिप्पणी का मजाक उड़ाया, जिससे ट्रंप गुस्से में आ गए और बैठक का माहौल पूरी तरह बिगड़ गया।
इससे ज़ेलेंस्की की कूटनीतिक समझ की कमी उजागर हुई। उनकी बॉडी लैंग्वेज – आंखें घुमाना, हाथ बांधकर बैठना और अमेरिकी नेताओं को अवहेलना करना – ने दिखा दिया कि वह अपनी जिद पर अड़े हैं और किसी भी लचीलेपन के लिए तैयार नहीं हैं।
3. अमेरिका की जनता और नेतृत्व ने ज़ेलेंस्की को कैसे देखा?
ओवल ऑफिस की यह असफल बैठक सिर्फ अमेरिकी प्रशासन तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसका अमेरिकी जनता पर भी गहरा असर पड़ा।
- 62% अमेरिकियों ने ज़ेलेंस्की के व्यवहार को अपमानजनक माना।
- जो अमेरिकी पहले सोचते थे कि अमेरिका यूक्रेन की जरूरत से ज्यादा मदद कर रहा है, उनकी संख्या 7% से बढ़कर 41% हो गई।
- ज़ेलेंस्की पर अमेरिकी भरोसा 72% से गिरकर 48% हो गया।
यानी, ज़ेलेंस्की की इस आक्रामक कूटनीति ने अमेरिका में यूक्रेन के समर्थन को और कमजोर कर दिया।
4. क्या अमेरिका अब यूक्रेन की मदद रोकेगा?
यूक्रेन अमेरिकी समर्थन के बिना रूस से लंबे समय तक नहीं लड़ सकता—यह एक सच्चाई है। लेकिन ज़ेलेंस्की ने खनिज समझौते को भी खतरे में डाल दिया, जिससे ट्रंप यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य सहायता रोक सकते हैं।
अमेरिका के सामने तीन ही विकल्प हैं:
- यूक्रेन के समर्थन में सीधे युद्ध में कूदे और रूस से टकराए—जो परमाणु युद्ध तक जा सकता है।
- यूक्रेन को पूरी तरह अकेला छोड़ दे, जिससे रूस उसे निगल सकता है।
- एक शांति समझौता कराए, जिसमें दोनों पक्षों को कुछ न कुछ खोना पड़ेगा।
लेकिन ज़ेलेंस्की की “हम कोई समझौता नहीं करेंगे” वाली सोच ने तीसरा विकल्प भी खत्म कर दिया।
5. क्या ज़ेलेंस्की का अहंकार यूक्रेन को नुकसान पहुंचा रहा है?
ज़ेलेंस्की बहुत लंबे समय से यूरोपीय नेताओं के समर्थन से घिरे हुए हैं, जिन्होंने हर हाल में उनकी बात का समर्थन किया है। लेकिन यह भूलना एक बड़ी गलती थी कि अमेरिका और यूरोप की राजनीतिक प्राथमिकताएं अलग-अलग हैं।
ज़ेलेंस्की की सबसे बड़ी गलतियां:
- उन्होंने ट्रंप को नाराज़ कर दिया, जो अमेरिका में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बनने वाले हैं।
- उन्होंने कूटनीतिक समझदारी नहीं दिखाई और जरूरत से ज्यादा आक्रामक बने रहे।
- उन्होंने यह नहीं समझा कि अमेरिका का धैर्य अब खत्म हो रहा है।
ट्रंप का मानना है कि अमेरिका ने पहले ही बहुत पैसा और हथियार यूक्रेन को दिए हैं, और अब यह यूरोप की जिम्मेदारी होनी चाहिए।
निष्कर्ष: यूक्रेन को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है
अगर ज़ेलेंस्की ने समझदारी दिखाई होती, तो वह ट्रंप के साथ एक व्यापक खनिज समझौता करते, जिसमें बाद में सुरक्षा गारंटी की संभावनाएं रखी जा सकती थीं। लेकिन उनकी हठधर्मिता और कूटनीतिक अपरिपक्वता ने इस संभावना को बर्बाद कर दिया।
अब सवाल यह है:
❓ क्या ट्रंप यूक्रेन की मदद पूरी तरह रोक देंगे?
❓ क्या यूरोप अकेले यूक्रेन को बचा सकता है?
❓ क्या ज़ेलेंस्की को अपनी रणनीति बदलनी होगी?
जवाब जल्द ही सामने आ जाएगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि ज़ेलेंस्की की गलतियों की कीमत यूक्रेन को चुकानी पड़ सकती है।